Nepal China के राजदूत की दखलंदाजी से चिढा
Nepal में मौजूद china की राजदूत हाओ यांकी कुछ दिनों से सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी जो कि अभी राजनीतिक मतभेदों से जूझ रही है को संभालने में व्यस्त रहें लेकिन अब उनकी अति राजनीतिक सक्रियता बहुत से Nepali लोगों को नागवार गुजरी है nepal के कुछ अखबारों की माने तो पिछले हफ्ते अपने लेखों में राजदूत हाओ यांकी और चीन की Nepal की घरेलू राजनीतिक में दखल देने की आलोचना की है
कुछ रिपोर्टों की माने तो नेपाली छात्रों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन भी किया है
नेपाल देश की दो प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों के विलय के बाद साल 2018 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का गठन हुआ था।
एनसीपी शुरू से ही ऐसे गठबंधन के तौर पर देखा जा रहा है जैसे वह कभी भी बिखर सकता है
इसकी कुछ और भी वजहें हैं इस विलय ने तो नेपाल के दो पुराने प्रतिबंधित पुष्प कमल दहल प्रचंड और खड़क प्रसाद शर्मा ओली को एक ही मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है जिस तरह से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा है उसने पार्टी को बिखरने का खतरा हो गया है दाल और उनके समर्थकों ने होली से पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री का पद छोड़ने की मांग भी रखी है
लेकिन ओली अभी भी अपने पद पर बने हुए हैं और उन्होंने भारत पर उन्हें सत्ता से बेदखल करने की साजिश का भी आरोप लगाया है और दोनों नेताओं के बीच तमाम की गई कोशिश बातचीत की कोशिशें भी नाकाम हो गई
नेपाल की घरेलू राजनीतिक का परिणाम
चीन की राजदूत हाऊ यांकी का पार्टी को बिखरने से रोकने के लिए कोशिशें लगातार जारी है उन्होंने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सीनियर नेताओं से मुलाकात करके चीन का संदेश लेकर वे बिद्या देवी भंडारी से भी मिलने गई है पर हाओ यांकी कि इस सक्रियता से नेपाल की घरेलू राजनीतिक में दखल दिया जा रहा है पर एनसीपी ने तो चीन की तरफ से किसी भी तरह की दखलंदाजी की बात से इनकार कर दिया है बहुत से लोग एनसीपी की सफाई से खुश नहीं दिख रहे हैं और इस पर नेपाली छात्रों ने विरोध भी किया है और नेपाली अखबारों की भी प्रतिक्रिया आई है
कबूल नहीं है दखलअंदाजी

नेपाली अखबार नया पत्रिका ने बुधवार को ही अपने लेख में लिखा कि चीन धीरे-धीरे नेपाल की घरेलू राजनीतिक राजनीतिक में अपने ही माइक्रोमैनेजमेंट का दायरा बढ़ाते हुए नजर आ रहा है अखबार ने अपने संपादकीय लेख में यह लिखा है की सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए मतभेदों को सुलझाने के लिए चीनी राजदूत का सक्रिय होना विपक्षी संबंधों और कूटनीति दोनों के ही लिहाज से ठीक नहीं है एक और नेपाली अखबार नागरिक ने नया पत्रिका की तर्ज पर भी अपनी भी बात लिखी है नागरिक लिखता है कि ऐसा लगता है कि नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल ना देने की अपनी पुरानी नीति से चीन अब पीछे हट गया है नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी सत्ता में हुए संघर्षों में राजदूत हाओ यांकी की सक्रियता को सामान्य नहीं मान सकते हैं इससे तो यह भी पता चलता है कि हम अभी तक स्वतंत्र रूप से फैसले लेने में सक्षम नहीं है
कूटनीतिक आचार संहिता
सबसे अजीब बात जो हुई है वह नेपाल की विदेश मंत्रालय को राजदूत हाओ यांकी कि जब मुलाकात राष्ट्रपति विदया देवी भंडारी से हुई इसके बारे में जानकारी भी नहीं थी कुछ अधिकारियों ने तो अंग्रेजी अखबार काठमांडू पोस्ट से यह भी कहा कि चीनी राजदूत का ऐसा करना कूटनीति के नियमों के बिलकुल खिलाफ था काठमांडू पोस्ट से बात करने पर एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करते हुए यह कहा कूटनीति आचार संहिता के तहत इन मुलाकातों के समय विदेश मंत्रालय को मौजूद होना चाहिए चुकी मीटिंग का कोई अधिकारिक रिकॉर्ड भी नहीं है इसीलिए हमें मालूम भी नहीं है कि वहां किन-किन मुद्दों पर बात हुई चीनी राजदूत की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से हुई मुलाकात को रूटीन मीटिंग बताया गया।
क्या कहना है विशेषज्ञों का नेपाली राजनीति में चीन की बढ़ती हुई दिलचस्पी को लेकर प्रेस और मीडिया तो शिकायत कर ही रहे हैं साथ ही वहां के विपक्षी नेताओं विदेशी नीति मामलों के जानकार और छात्र भी इस पर सवाल उठा रहे हैं पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के चेयरमैन कमल थापा ने ट्वीट कर यह कहा था कि क्या रिमोट कंट्रोल से चल रहा कोई लोकतांत्रिक गणराज्य नेपाल के लोगों को फायदा करा सकता है जिसमें कमल थापा द्वारा की गई ट्वीटसे यह बात साफ साफ था कि वह चीनी राजदूत की नेपाल के नेताओं से हुए मुलाकातों का हवाला दे रहे थे कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों कि विशेषज्ञों का तो यह भी मानना है कि एक राजदूत का नेपाल की घरेलू राजनीतिक विवाद में सक्रिय भूमिका निभाना एक असामान्य बात है और यह बात नेपाल के लिए पारंपरिक रूप से सही नहीं लगती

कम्युनिस्ट सरकार नेपाल में
नेपाल के राजदूत भारत में रह चुके लोगराज बराल ने नेपाली टाइम्स से हुए बातचीत में कहा कि जो कुछ साल पहले भारत नेपाल में जिस तरह से दखल देता था चीन आज वही कर रहा है चीन तो अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नेपाल की राजनीति में कदम बढ़ा रहा है चीनी मामलों के विशेषज्ञ रूपक सपकोटा इस मामले को तवज्जो नहीं देते उन्होंने तो यह भी कहा कि चीन ने नेपाल में एक कम्युनिस्ट सरकार देखना चाहेगा थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन अफेयर्स के कार्यकारी निर्देशक रूपक सब कोटा कहते हैं कि यह मुलाकात इस वक्त हालात का जायजा लेने के लिए की गई होगी और सरकार का नेतृत्व कौन करेगा इसे लेकर उनकी कोई पसंद ना पसंद होगी द हिमालय टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाली छात्रों के कुछ ग्रुप में इस हफ्ते की शुरुआत में ही चीनी राजदूत के हुए मुद्दे पर अपना अपना विरोध प्रदर्शन भी किया था और वे चीनी राजदूत को नेपाल के घरेलू मामलों में दखलअंदाजी करने को मना कर रहे थे
विदेश नीति चीन की सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता संघर्ष को खत्म करने के लिए चीन के राजदूत की जो कोशिश की जा रही है उसे चीनी की आक्रामक विदेश नीति का हिस्सा माना जा रहा है पिछले 5 सालों से हिमालय की गोद में बसे इस छोटे से देश में अपने पांव पसारने की कोशिश कर रहा है और अब चीनी राजदूत की नेपाली घरेलू राजनीतिक में बढ़ती सक्रियता भारत के लिए भी असहज स्थिति पैदा कर रही है प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही बोली ने चीन के साथ नजदीकियां बढ़ाई है और भारत को नीचा दिखाया है
Vitamin D corona से लड़ने में कितना मददगार
कुछ सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री ओली एक देश की कीमत पर दूसरे देश का पक्ष लिया है इसी बात से नेपाली लोग बहुत चिंतित नजर आ रहे हैं उनकी चिंता यह है कि ऐसा करने से आर्थिक रूप से कमजोर और राजनीतिक रूप से अस्थिर नेपाल की मुश्किलें दिन-ब-दिन बढ़ सकती है
विदेशी नीति का भी और संतुलन होना
विपक्ष के राजनेता ने माइक रिपब्लिका अखबार से बात करते हुए यह कहा था कि होली सरकार को किसी एक देश का पक्ष लेते समय विवेक से काम लेना चाहिए क्योंकि अगर इस बहू ध्रुवी दुनिया में हम किसी भी एक शक्ति का पक्ष लेते हैं तो यह विदेशी नीति को लंबे समय के लिए असंतुलन कर देगा और हमें नुकसान पहुंचाएगा
संयुक्त राष्ट्र में भी नेपाल के स्थाई प्रतिनिधि रह चुके दिनेश भट्टराई आगे बढ़कर चेतावनी देते हुए कहते हैं कि चीन नेपाल की घरेलू राजनीति में उतरता है तो इसके नतीजे उल्टे हो सकते हैं भट्टराई ने अंग्रेजी अखबार से यह भी कहा कि हो सकता है कि चीन सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में एकता देखना चाहता हूं लेकिन उसने अगर बार-बार दखल दिया तो नेपाल में दूसरे ताकतवर देशों को इससे परेशानी हो सकती है
राजनीतिक विश्लेषक जय निशांत भी इस बात से सहमत लगते हैं और उन्होंने भी कहा कि अगर चीन नेपाल की घरेलू राजनीतिक में अपनी गतिविधियां बढ़ाता है तो इससे नेपाल की परेशानी और बढ़ेगी