Coronavirus : vaccine के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाले भारतीय दीपक पालीवाल की कहानी
1 दिन बैठे-बैठे coronavirus से जंग में मैं कैसे मदद कर सकता हूं इस सवाल का ख्याल आया तो मैंने सोचा कि क्यों ना दिमाग की जगह शरीर सही मदद करो फिर मेरे दोस्त ने बताया कि ऑक्सफोर्ड में कुछ ट्रायल चल रहे हैं और वॉलिंटियर की जरूरत है फिर मैंने अप्लाई कर दिया
बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में दीपक पालीवाल ने यह बात साझा की दीपक पालीवाल जयपुर में जन्मे और फिलहाल लंदन में रह रहे हैं और दीपक पालीवाल उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने खुद ही वैक्सीन ट्रायल के लिए वालंटियर किया हैकोरोना वैक्सीन बनाने के प्रयास अमेरिका चीन ब्रिटेन भारत और तमाम देशों में इसकी रिसर्च चल रही है लेकिन किस देश यह वैक्सीन पहले तैयार कर पाएगा यह जानना अभी मुश्किल है
लेकिन वैक्सीन के ट्रायल के लिए वालंटियर करने वाले इंसानों की अभी कमी है
तो वैज्ञानिको और डॉक्टरों को वालंटियर करने वाले लोगों को ढूंढने में दिक्कतें भी आती है और दीपक जैसे लोग अगर मिल जाए तो वैक्सीन को खोजने में थोड़ी सी तेजी आ रही हैट्रायल के लिए लोग अपने फैसले पर टिके हुए नहीं रह सकते पर दीपक इस ट्रायल के लिए अपने फैसले पर कैसे मिल रहे हैं इस सवाल के जवाब में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह अप्रैल महीने की बात है जब 16 अप्रैल को दीपक को पता चला कि वह दक्षिण ट्रायल के लिए वॉलिंटियर कर सकते हैं तो उनकी पत्नी उनके बिल्कुल खिलाफ थी और उन्होंने अपने परिवार वाले को कुछ नहीं बताया जाहिर है कि वह उनके फैसले का विरोध ही करते इसलिए यह बात उन्होंने केवल अपने नजदीकी दोस्तों से शेयर की थी को फोन आया और बताया कि आपको चेकअप के लिए सेंटर में आना होगा लंदन में टोटल पांच सेंटर बनाए गए हैं और उनमें से एक सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में दीपक गए और वहां पर उनके सारे पैरामीटर चेक किए फिर सब कुछ सही निकला 1000 लोगों को उनकी जरूरत थी जहां पर हर मूल के लोगों की जरूर होता है कि अगर सफल भी हुआ तो भी उसे हर देश में इस्तेमाल किया जा सके इसलिए लोगों की जरूरत होती है
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मैसेज आया कि ट्रायल के दौरान एक की मौत भी हो गई दीपक बहुत बड़ी दुविधा में थे कि वह क्या करने जा रहे हैं और कुछ नहीं कर पा रहे थे अंत में उन्होंने अस्पताल जाने का निर्णय लिया और अस्पताल पहुंचने के बाद उन्हें कुछ वीडियो दिखाए गए और उस प्रक्रिया से जुड़े सभी अच्छे से बताए गए दक्षिण में एक केमिकल कंपाउंड है अस्पताल वालों ने बताया
किसी भी vaccine में 15 फ़ीसदी कंपाउंड मेनिनजाइटिस वैक्सीन से मिलता जुलता है और डॉक्टर ने दीपक को यह भी बताया कि अब कॉन्प्लेक्स भी कर सकते हैं और अगेन प्ले फेलियर का भी खतरा रहता है और फिर जान भी जा सकती है उसके बाद बुखार और कपकपी जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं पर इस प्रोसेस में कुछ नर्स और डॉक्टर भी उन्हें वॉलिंटियर कर रहे थे और उन्होंने ही दीपक का हौसला बढ़ाया
किसी भी तरह की वैक्सीन के ट्रायल के बहुत फेज होते हैं

सभी प्रकार की ट्रायल होने के बाद वैक्सीन को सबसे अंत में ही 1 ट्रायल किया जाता हैपर जिस व्यक्ति पर वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है उसके लिए बहुत जरूरी है कि उसे संक्रमण ना हो यानी जिस व्यक्ति पर करो ना कि वैक्सीन का ट्रायल हो रहा है वह वॉलिंटियर कोरोनावायरस सकते और साथ में ही करो ना कि एंटीबॉडी भी शरीर में नहीं होने चाहिए अगर वालंटियर कोरोना संक्रमित रहा और ठीक हो गया तो वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलिंटियर नहीं कर सकता है साथ में वॉलिंटियर की उम्र 18 से 55 साल के हो सकते हैं और वॉलिंटियर का पूरी तरह स्वस्थ होना भी जरूरी है इस बात का भी ट्रायल के दौरान ध्यान रखा जाता है कि केवल एक उम्र के लोग और एक मूल के लोग ना हो ट्रायल की प्रक्रिया पुरुष और महिला दोनों पर होती है ऑक्सफोर्ड में लेने वालों के लिए सार्वजनिक परिवहन से कहीं भी आने-जाने की विधि दीपक ने बीबीसी से हुए बाद में यह कहा कि ट्रायल में भाग लेने के लिए किसी तरह के पैसे नहीं दिए गए और इंश्योरेंस की व्यवस्था थी trial के दौरान किसी और को अपना खून नहीं दे सकते
क्या इतने डिस्क के बाद इस ट्रायल के लिए आगे बढ़ कर आना इतना आसान था
इस सवाल पूछे जानेऔर दीपक ने कहा कि मैं नहीं जानता था कि ट्रायल सफल होगा कि नहीं मैं बस अपने समाज के लिए कुछ करना चाहता था इसीलिए मैंने यह किया
तो कैसी होती है ह्यूमन ट्रायल की प्रक्रिया
यह सवाल पूछे जाने पर दीपक ने कहा कि पहले दिन उनके बाजू में इन्फेक्शन कर दिया गया और उसी दिन उन्हें थोड़ा बुखार भी आया और कंपकंपी हुई
वह कहते हैं कि जिस जगह पर इंजेक्शन दिया उस जगह पर थोड़ी सूजन भी थी और डॉक्टरों का कहना है कि यह नॉर्मल बातें इसके साथ उन्हें हर दिन अस्पताल के साथ-साथ आधे घंटे का समय बिताना पड़ता है और उन्हें हर रोज एक e-diary भरनी पड़ती है जिसमें उन्हें रोज अपने शरीर का तापमान पर वजन बीपी इंजेक्शन की जगह जो दाग हुआ था उसे मापने की प्रक्रिया पूरी कर फॉर्म भी भरना पड़ता था
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इस चीज के लिए उन्हें सारा जरूरी सामान अस्पताल से ही दिया जाता था ट्रायल के बाद उन्हें हमेशा यह बताना पड़ता है कि आप कहां गए और आप किस-किस से मिले अपने मास्क पहनने रखे हैं या नहीं और खाना क्या खा रहे हैं उन्हें अपना पूरा ब्यौरा 28 दिनों तक की डायरी में भरना पड़ता है और यह सारी प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर से लगातार उनके फोन से संपर्क में रहते हैं
7 जुलाई को भी उनका फॉलोअप हुआ है और उन्हें यह फॉलोअप रेगुलर करना पड़ता है मतलब कि अप्रैल से शुरू हुई प्रक्रिया पूरी जुलाई तक चल रही है और इस प्रक्रिया के बाद से दीपक को तीन बार बुखार भी आया और थोड़ा डर भी लगा डर उन्हें इस बात का नहीं था जिन्होंने अपनी जिंदगी गांवाने का नहीं था बल्कि अपनों को आगे नहीं देख पाने का था
विदेश में रहने के कारण दीपक अपने पिता के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए थे दीपक के पिता तो 3 साल पहले ही चल बसे थे
उन्हें ट्रायल के दौरान इसी बात का डर था कि वह अपनी मां और भाई बहन से मिल पाएंगे कि नहीं हालांकि अस्पताल से आपातकालीन स्थिति में एक इमरजेंसी कांटेक्ट नंबर भी दिया जाता है लेकिन तब भी उन्हें डर लगा और यह डर उन्हें आज भी है दीपक ने कहा कि वह 90 दिन तक कहीं भी बाहर आ जा नहीं सकते और वैक्सीन का दोस्तों ने केवल दो बार ही लगा है पर फॉलो के लिए उन्हें समय-समय पर अस्पताल अभी भी जाना पड़ता है
दीपक पालीवाल कौन है

लंदन में एक फार्मा कंपनी में कंसल्टेंट के तौर पर 42 साल के दीपक काम करते हैं भारत में ही जन्मे और पले बढ़े हैं उनका परिवार अब जयपुर में रहता है और और वह अपनी पत्नी के साथ लंदन में रहते हैं और उनकी पत्नी भी फार्मा कंपनी में काम करती है
दीपक अपने परिवार में सबसे छोटे हैं और जब बॉक्सिंग की ट्रायल के बाद उन्होंने अपने परिवार को इसके बारे में बताया तो उनकी मां और भाई ने तो फैसले से स्वागत किया पर उनकी बहन उनसे नाराज हो गई दीपक की पत्नी पर डिसूजा ने भी बातचीत ने बताया कि वह भी दीपक के फैसले से खुश नहीं थी एक बार के लिए तो वह मान गई लेकिन दोबारा वह दीपक को ऐसा नहीं करने देगी तो दीपक का ट्रायल तो पूरा हो चुका है लेकिन ऑक्सफोर्ड में अभी भी 10000 लोगों पर ट्रायल किया जा रहा है
दीपक के साथ सभी को भी वैक्सीन के सफल होने का इंतजार है