लद्दाख के बौद्ध बोले यदि इंसाफ नहीं मिला तो हो जाएगा हमारा सफाया
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किसी भी समुदाय को जब अपना अस्तित्व बचाना होता है तो वह समय उसके लिए शांत रहने का नहीं होता और उस समय में कोई शांत भी नहीं रह सकता। कुछ इसी तरह के कारणों की वजह वजह से भुज के अहिंसा शांति के उपदेशों के रास्ते को छोड़कर आक्रमण की नीतियों को अपनाने के लिए बौद्ध समुदाय मजबूर हो गए हैं।
मोक्ष की साधना शांति में वातावरण जाती है। किंतु अपनी परंपरा संस्कृति और समुदाय को बचाने के लिए कई बार दूसरे रास्तों पर भी विचार करना होता है और उनका उपयोग करना पड़ सकता है। शायद इसी कारण लद्दाख के बाद उग्र हो रहे हैं।उन्होंने चिंता जाहिर की कि अब यदि इंसाफ नहीं मिला तो देश से पौधों का सफाया हो जाएगा और जल्द ही लद्दाख एक मुस्लिम देश बन जाएगा।
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दरअसल बात यह है कि लद्दाख में बहुत लड़कियां लव जिहाद का शिकार बनाई जा रही है ताकि लद्दाख को भी मुस्लिम बहुल इलाकों में से एक बनाया जा सके। लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन का कहना है कि मुस्लिम नौजवान खुद को बहुत बताकर लड़कियों से जान पहचान बढ़ा कर शादी कर लेते हैं। बाद में उन्हें इस बात की जानकारी मिलती है कि वह बहुत नहीं मुस्लिम है। लद्दाख में 2 जिले हैं जिनका नाम क्रम से लेह और कारगिल है यहां की कुल आबादी दो लाख 74 हजार है। यहां पौधों की आबादी 51% है जबकि मुस्लिमों की आबादी 49% है एलबीए की आपत्ति इस बात पर है कि प्रशासन कथित तौर पर बौद्ध लड़की के धर्म परिवर्तन के मामले की अनदेखी करता आ रहा है।
आपको बता दें कि वर्ष 1989 में यहां पौधों और मुस्लिमों के बीच हिंसा हुई थी। इसके बाद से ही बौद्धों ने मुस्लिमों का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार कर दिया था।वर्ष 1961 तक इस क्षेत्र के लोगों के लिए कोई अलग से योजना नहीं बनाई गई थी। मई 1949 में एलबीए के उस समय के अध्यक्ष चेवांग रिंगजिन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा था कि लद्दाख का प्रशासन सीधे भारत सरकार के हाथों में हो या जम्मू के हिंदू बहुल इलाकों के साथ मिलकर इससे अलग राज्य बना दिया जाना चाहिए। इसी बीच लद्दाख पर पाकिस्तान की भी आंख लड़ी हुई थी और यह लव जिहाद भी पाकिस्तान की ही रणनीति का एक हिस्सा है क्योंकि पाकिस्तान का मानना है कि लद्दाख में भी मुस्लिम आबादी में वृद्धि हो।
वर्ष 2003 से अब तक यहां पर 100 से ज्यादा लड़कियों को लव जिहाद का शिकार बनाया गया है और हमेशा की तरह यही दावा किया गया है कि उन्होंने ऐसा अपनी इच्छा अनुसार क्या है।
हालांकि इन घटनाओं पर पूर्व की भांति राजनीति होगी और राजनीति ही इस धड़ाका इस कथित अल्पसंख्यक समुदाय की ढाल बनकर खड़ी होगी। आपको बता दें की बात हमेशा से ही अहिंसा में विश्वास करते हैं और वह घृणा या हिंसा फैलाने को समर्थन नहीं देते लेकिन कब तक यह बौद्ध मौन रहकर हिंसा और अत्याचार का सामना करते रहेंगे?