बैल का घी
गोनू झा राजा शिव सिंह के दरबार के दरवारी थे। आमोद -प्रमोद तथा किसी प्रकार के कठिन प्रश्न का उत्तर देने के लिए गोनू झा कभी भी नहीं चूकते थे। एक दिन राजा शिव सिंह सभी दरबारियों के साथ अपने दरवार में बैठे हुए थे। उसी समय राजा ने गोनू झा से कहा की मुझे बैल का घी ला दीजिये। अगर नहीं लाएंगे तो मई आपको फांसी पर चढ़वा दूंगा।
दरबार समाप्त होते ही गोनू झातीन दिन का समय लेकर अपने घर चले गए और अन्न पानी त्याग कर अपने पलंग पर सो गए। जब भोजन करने के लिए उनकी पुत्री उन्हें बुलाने आयी तो गोनू झा उदास होकर अपनी पुत्री से कहने लगे – बेटी आज मैं अन्न -पानी कुछ नहीं खाऊंगा। आज राजा ने मुझसे बैल का घी माँगा है , अगर मई घी नहीं दूंगा तो वो मुझे फांसी पर चढ़ा देंगे। मुझे अन्न पानी कुछ नहीं सुहाता है। गोनू झा की पुत्री भी गोनू झा से काम चतुर नहीं थी। वो हंसकर बोली – पिताजी, आप इसके लिए कुछ भी चिंता न करे। मई सहर्ष तीसरे दिन उन्हें घी पहुंचा दूंगी।
यह सुनकर गोनू झा बहुत ख़ुशी हुए और भोजन कर दरबार में आये। उसी दिन मध्य रात्रि में गोनू झा की पुत्री एक बकरी के बचे को काट कर उसके खून में एक धोती रंगकर राज दरबार के पास वाले तालाब पर गयी।
वह वह झूठ मुठ का रोने का बहाना कर चिल्लाती हुई धोती धोने लगी। मध्य रात्रि में यह रोने का शब्द राजा के कान में पड़ा। राजा झट एक सिपाही के द्वारा गोनू झा की पुत्री को अपने सामने बुला कर पूछने लगे।
तुम इस मध्य रात्रि में तालाब पर क्यों रो रही थी ?गोनू झा की पुत्री बोली धर्मावतार , आज दस बजे रात में हमारे पिताजी को प्रसव हुआ है। बच्चा पेट से मरा हुआ निकला। उसी बच्चे के वियोग में मै यह वस्त्र साफ़ करने के लिए तालाब पर रोते हुए आयी थी।
रजा ने कहा तुम पागल तो नहीं हो गयी हो ? संसार पे पुरुष को भी कही प्रसव होता है।
गोनू झा की पुत्री बोली दयानिधे अगर पुरुष का प्रसव होने असंभव है तो बैल के घी के लिए हमारे पिताजी को क्यों आज्ञा दी गयी है।
बैल भी तो पुलिंग ही है यह सुनकर राजा ने खुश होकर गोनू झाकी पुत्री को पुरस्कार देकर विदा किया।