गोनू झा का बांस
एक साल राजा शिव सिंह के राज्य में रौदी होने के कारण जनता परेशान हो रही थी।
वर्षा के बिना खेत गृहस्थी के लिए लोग त्राहि त्राहि कर रहे थे। अचानक एक दिन एक ठग ब्राम्हण पंडित का वेश धारण कर राजा के दरबार में पहुंचा और बोला की मै हवन यज्ञ द्वारा जिस गांव में चाहूं ,जल वर्षा सकता हूँ।
यह समाचार झटपट सम्पूर्ण गांव में फैल गया। राजा ने भी उनका पूर्ण सत्कार करते हुए रात में ठहरने का प्रबंध किया। प्रातःकाल पंडित बेचारा भी स्नान क्रिया आदि से निवृत होकर सिर में चन्दन का बीस लगाकर राजा तथा ग्रामीण जनता के साथ यज्ञ स्थान चुनने के लिए चले।
जिस दिन ठग पंडित राजा के दरबार में आये उसी दिन संध्या काल में गोनू झा भी कई दिनों पर दूसरे गांव से घर आये। उन्हें अपने परिवार वर्ग से ज्ञात हुआ की एक पंडित रजा के दरबार में जल वर्षाने आये है।
प्रातःकाल गोनू झा भी स्नान क्रिया आदि से निवृत होकर सिर में चन्दन का एक सौ थोप लगा कर दरबार के तरफ चले। रस्ते में उनकी ठग पंडित से मुलाकात हो गयी। दोनों में परस्पर बातें होने लगी।
गोनू झा पूछने लगे की आपका नाम क्या है ? तथा आप में कौन सा गुण है ? पंडित ने कहा की मेरा नाम बिस ठोप झा है, मई जिस गाओं में चाहता हूँ पानी वर्षा देता हूँ।
पंडित भी गोनू झा से पूछने लगे की आपका नाम क्या है तथा आप में कौनसा गुण है।
गोनू झा हँसते हुए बोले की मेरा नाम सहस्र ठोप झा है। मै परम मुर्ख ब्राम्हण हूँ। हममे कुछ भी गुण नहीं है। हमारे पिताजी अपने मरण काल के समय में मुझे एक बांस दे गए थे और कैह गए थे की जिस खेत में वर्षा न हो उस खेत में जाकर मेघा को खोचाड़ देना। उस खंड में वर्षा हो जायेगा।
पंडित जी बोले की उतना बड़ा बांस आप रखते कहा हैं। गोनू झा बोले आपही के जैसे पंडित के गुदामार्ग में। बेचारा ठग ब्राम्हण लज्जित होकर वह से अपने घर की और भाग चला।